Sunday, July 3, 2016

आओ लिखें कहानी - तीसरी कहानी [ व्यंग्य ]



आओ लिखे कहानी - तीसरी कहानी [व्यंग्य ]
मित्रो आपके कहानी लिखने के प्रयास को आगे बढाने हेतु आज आपको कुछ शर्तो के साथ व्यंग्य कहानी का निर्माण करना है....थोड़ा आपको व्यंग्य की परिभाषा दे दूं जिससे कहानी रचने में आपको दिक्कत न आये.
व्यंग्य वही है जिसे आप अंगरेजी में सटायर कहते है. किसी भी सामाजिक बुराई या किसी व्यक्ति विशेष की बुराई को सीधे न कह कर दूसरी तरह से [ ताने मारते हुए, बोली मुहावरों का उपयोग करते हुए हंसी उडाना, चुटकी लेना ] कहना है. व्यंग्य का उद्देश्य किसी व्यक्तिविशेष या समूह का उपहास करना होता है तथा चलित, प्रथाओं, दोषों या मूर्खताओँ का अतिरंजना के साथ मज़ाक उड़ाया जाता है. यह व्यक्तिगत आक्षेप के समान होता है.कही पढ़ा था "अभिव्यक्ति में हास का भाव निश्चित रूप से विद्यमान हो तथा उक्ति को साहित्यिक रूप मिला हो. हास्य के अभाव में व्यंग्य गाली का रूप धारण कर लेता है. और साहित्यिक विशेषता के बिना वह विदूषक की ठिठोली मात्र बनकर रह जाता है" शायद आप इसे समझ गए होंगे. तो चले आगे बढ़े निम्नलिखित बातो का ध्यान रखते हुए
1. इस दिए हुए चित्र को आधार मान हास्य 'व्यंग्य' कर अपनी रचना को लिखे.
2. रचना कम से कम 500 शब्दों की और अधिकतम 1,500 शब्दों की हो.
3. इस कहानी में 'स्वयं' को शामिल करना जरुरी है. [ स्वयं को हंसी का पात्र बनाये या दूसरे की हंसी उड़ाए यह आप पर निर्भर है ]
4. इस कहानी के लिए 10 दिन का समय है. अंतिम तारीख 26 जून 2016 है.
5. आपकी कहानी में जहाँ पर जरूरी होगा आपको दिशा निर्देश दिए जायेंगे और आप उस पर अमल कर अपनी कहानी को आगे बढाए.

किरण आर्य
--- आई हेट टियर्स ---

झरीलाल एक सीधे साधे सरल प्रकृति के जीव है, पांच भाई बहनों में तीसरे स्थान पर जन्मे झरीलाल का जन्म होते ही उनके दादा ने प्यार से उनका नाम झरी रख दिया. बचपन में उन्होंने कई मर्तबे पूछा दद्दा हमरे नाम का क्या मतलब होता है, तो दद्दा ने हर बार यह कहकर टाल दिया अरे बचुआ नाम तो नाम होता है उसका कोनो मतलब शतलब न होता है. खैर झरीलाल का मन बचपन से ही पढाई की जगह उलटी सीधी हरकतों और शरारतों में लगता था. एक बार उन्होंने काका की फिल्म क्या देख ली वह उनके पंखे हो लिएअरे पंखे यानी का कहते है वो ससुरा हाँ फेन हो लिए. स्कूल से बंक मारकर अक्सर वो काका यानी राजेश खन्ना की फ़िल्में देखते थे. किसी तरह घसीटकर उन्होंने आठवी कक्षा तक पढ़ाई की और फिर एक दिन घर से भागकर झरी बाबु दिल्ली आ पहुचे.
दिल्ली आकर उन्हें न केवल दिन में तारे और सगरे गृह दिखाई दिए अपितु आटें दाल का भाव भी पता चल गया. दिल्ली जैसे महानगर का आकर्षण लोगो को घर छोड़ यहाँ भाग आने को मजबूर कर देता है. गाँव घर में रहने वालो के लिए यहाँ आना-बसना विदेश में बसने रहने से कम न होता है. इसी आकर्षण में बंधे झरी बाबू जैसे ही दिल्ली आये उनके होश ठिकाने आ गए. इतनी भाग दौड़ वाली जिन्दगी साथ में रहने खाने का कोनो ठिकाना नहीं, सब तरफ एक अंधी दौड़ जहाँ कदम मिलाकर चलने में आप चूके मुंह के बल गिरना तय आपका. खैर झरी बाबु जुझारू प्रकृति के जुगाडू जीव थे, गिरकर उठने में तौहीन नहीं समझते थे अपनी.  तो. उन्होंने ठान लिया के वो मेहनत मजूरी करेंगे लेकिन अब दिल्ली में बसकर ही रहेंगे. झरीलाल रोज़ सुबह उठते और मजदूरों की कतार में खड़े हो जाते देहाड़ी की तलाश में.  रोज़ गड्डा खोदते और पानी पीते. बस कुछ इस तरह चल रही थी उनकी गुजर बसर.
एक दिन किसी ने उन्हें बताया के एक नया विश्वविद्यालय खुला है और उसमे भर्ती हो रही है. झरी बाबु तुरंत जा पहुचे वहां. वहां थोड़ी बहुत पूछताछ के बाद उन्हें नौकरी मिल गई खलासी की. अब तो झरीबाबू की ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा.  उन्होंने काका के गाने "जवानी ओ दीवानी तू जिंदाबाद" की तर्ज़ पर झूमते हुए तुरंत फ़ोन लगाया और फ़ोन पर अपनी नौकरी की सूचना अपने अम्मा बाबा को दी. झरी बाबु की जहाँ पोस्टिंग हुई, हम भी उसी डिपार्टमेंट में कार्यरत थे. उनसे जब हमारा सामना हुआ तो हमें बातो बातो में ही पता चला के वो काका के इतने बड़े वाले पंखे है.  जैसे ही काम से जरा फुर्सत पाते वे काका के गाने सुनते थे  और जब खुश होते तो गुनगुनाते भी थे अक्सर. हम अक्सर उनके इस पंखेपन का मज़ा लेते थे. वैसे बिलकुल एंटरटेनमेंट पीस थे वो हमारे डिपार्टमेन्ट में.
नौकरी करते हुए छः महीने ही हुए थे कि एक दिन उनके बाबा का फ़ोन आया, उन्होंने कहा झरी तुम परसों की ट्रेन पकड़ तुरंत घर चले आओ. झरी को लगा शायद कुछ जरुरी काम आन पड़ा है और उन्होंने घर आने के लिए हामी भर दी.  अगले दिन उनके भैया का भी फ़ोन आया और बोले झरी कल सुबह समय से पहुच जाना तुम. झरीबाबु को लगा जरुर कुछ सीरियस टाइप मेटर है इसलिए उन्होंने तुरंत जाके टिकेट बुक कराया और अगले दिन जा पहुंचे घर अपने. वहां पहुच वो क्या देखते है कि घर में बड़ी चहल पहल का माहौल था. वो सोच ही रहे थे तभी बड़के भैया ने आके उन्हें गले लगा लिया.  झरी बोले भैया ये चहल पहल कैसी है ? भैया हंसकर बोले अरे बुडबक बाबा अम्मा ने तुहार वास्ते एक गुनी संस्कारी लड़की देखी है, आज से चौथे दिन तुम्हारी शादी तय हुई है. बस फिर क्या था इस तरह से झरीलाल के जीवन में चमेलिया का प्रदापर्ण हुआ. जब झरी बाबु वापिस आये तो मिठाई खाने को मिली और हमें भी पता चला के वह अपने साथ चमेलिया रानी को भी लाये है. यानी उनके जीवन में प्रेम गीत बजने लगे....."जिंदगी एक सफ़र है सुहाना" जैसे.
चमेलियाँ के लिए दिल्ली का माहौल नया था एकदम. गाँव की निपट गंवार गोरी को कुछ ही दिनों में दिल्ली की हवा लग गई.  दिल्ली की आबोहवा अच्छे अच्छों के रंग ढंग बिगाड़ देती है और  जिसे यह हवा लग जाती है वह आसमान में उड़ने के साथ खुली आँखों से सपने देखने लगता है. चमेलियाँ जैसे ही इस हवा का शिकार हुई उसने झरी को कहा सुनिए हमें भी पेंट शर्ट पहननी है और चमेलियाँ थोड़े ही दिनों में मोर्डेन मिसेज लाल हो गई. समय के साथ उसने झरी बाबु को दो प्यारी बेटियां दी  लेकिन धीरे धीरे सुडौल सुंदर चमेलियाँ बेडौल हो गई. एक दिन उसकी पड़ोसन ने उसके मन में यह बात डाल दी के मिसेज लाल आजकल जमाना बहुत ख़राब है और तुम झरी भाईसाहब को एक बेटा नहीं दे पाई हो. अभी तुम्हारा वो चार्म भी बाकी नहीं रह गया है  तो देखना वो कहीं और नैन न लड़ा बैठे. बस उसी दिन से यह बात मैडम के मन में फांस सी गढ़ गई  और वो अवसाद के सागर में डुबकी लगाने लगी. झरीलाल अपनी छमिया को बहुत चाहते थे और रामलला की तरह एक पत्निभक्ति के अनुपालक थे. इसीलिए उन्होंने डॉ एवं दवाई के साथ उनकी सेवा में दिनरात एक कर दिया लेकिन चमेलियाँ को इस बात का विश्वास न दिला पाए के वहीँ उनके जीवन का एकलौता प्यार है.
झरी बाबु अब दिन रात परेशां रहने लगे. पूरे ऑफिस में उनकी परेशानी छूत के रोग सी फ़ैल गई.  अपनी परेशानियों से निजात पाने को झरी बाबू ने सोशल मिडिया का सहारा लेने की ठानी उन्होंने हमारी सहायता से फेसबुक अकाउंट बनाया और मुस्कुराते हुए एक फोटो खीचा लगा दी. तीसरे दिन उनके इनबॉक्स में एक मेसेज था जो एक सुंदर सी स्त्री जिसका नाम सविता का था. उसने इन्हें नमस्कार कर इनके बारे में पूछा था. झरीलाल बहुत सामाजिक प्रकृति के जीव थे तो उन्होंने औपचारिकता का निर्वाह करते हुए सविता को अपने विषय में सब जानकारी दे डाली. अब धीरे धीरे उनकी रोज़ ही सविता से बात होने लगी.  बातों के साथ साथ नजदीकियां बढ़ने लगी.  झरीलाल बीवी के डिप्रेशन से परेशां थे तो सविता अपने अकेलेपन से दुखियाई हुई थी.  इस तरह दो दुखियारों को एक दूजे का सहारा मिला और प्रेम अंकुर दिलो में फूटने लगा.  अब समय के साथ सविता उनसे छोटी बड़ी फरमाइश भी करने लगी जिन्हें प्रेम का अंग समझ झरीबाबु ख़ुशी ख़ुशी पूरा करने लगे. उन्होंने एक दो बार कहा भी सविता से कि प्रिय अब हमें एक बार तो मिल ही लेना चाहिए लेकिन सविता ने हर बार एक मस्त सेल्फी भेजकर साथ में कुछ न कुछ बहाना बना उन्हें टाल ही दिया. सो झरीबाबू उनकी मस्त सेल्फीज को देख देखकर ही अपने दिल को बहलाते रहे, और हीरो इस्टाईल में काका का गीत मेरे सपनो की रानी कब आएगी तू, चली आ तू चली आगुनगुनाते रहे. और हम यह देख मुस्कुराते रहे कि झरी बाबू को भी प्रेम की हवा आखिर लग ही गई.
इश्क परवान चढ़ने लगा और चैट में ही घनिष्टता बढ़ने लगी  सारी सीमायें तोड़कर. दो जिस्म मानसिक रूप में ही सही एक होने लगे. झरीलाल अपने प्रेम को लेकर संजीदा होने लगे.  उधर चमेलियाँ से उनके बदले रंगढंग छिपे न रहे. वह देख रही थी पिछले कुछ समय से झरीबाबु हर समय बस अपने मोबाइल से ही चिपके रहते है  और न जाने का टाइप करते रहते है. एक दिन बेटी की मदद से उसने झरी बाबु के मोबाइल को खखोल डाला. मोबाइल में झरीलाल का फेसबुक अकाउंट खुला हुआ था. वहां उनके और सविता के प्रेमप्रकरण का पर्दाफाश चमेलियाँ के सामने हो गया.
बस फिर क्या था सीआइडी के एसीपी प्रदुम्न की आत्मा चमेलियाँ में प्रवेश कर चुकी प्रतीत होने लगी.  उसने सोते हुए झरीलाल को झकझोर के उठाया और उसका गिरेबान पकड़कर अपने प्रश्नों का जखीरा झरी के मुंह पर दे मारा. चमिलियाँ गुस्से से गुर्रा कर बोली ये सब क्या है जी ? कौन है ये चुड़ैल ? कबसे चल रहा है इसके साथ चक्कर तुम्हारा ? झरी बाबु कच्ची नींद में थे लेकिन बीवी के हाथ में अपने मोबाइल पर अपना मेसेज बॉक्स खुला देखकर उनके तोते उड़ गए.  उनकी समझ के चील कौएं दिमाग में शोर मचाने लगे लेकिन प्रत्यक्ष में वो मौन साधे मूर्ति बने बैठे रहे और इधर चमेलियाँ ने चिल्ला चिल्लाकर पूरा घर सर पर उठा रखा था. वो शांति प्रतीक बने बैठे थे. चमेलियाँ रोते हुए कह रही थी मैं तो शुरू से जानती थी यह आदमी भरोसा के लायक है ही नहीं. हम एक बिटवा क्या न दे पाए इस हरामखोर को यह दूसरी महरारू से नैन लड़ा बैठा, हाय अब हम का करे, किसके बाबा को बाबा कहे ? हमरे तो गाँव में बैठे चिलम फूंक रहे होंगे आराम से.
जब चिल्ला - चिल्लाकर चमेलियाँ हलका हो ली तब झरीलाल ने धीरे से कहा देखो चमेलियाँ तुम हमरी धर्मपत्नी हो लेकिन यह भी सच है हम सविता से सच्चा प्रेम करते है बिलकुल काका की फिल्म अमर प्रेमजैसा प्रेम. सो हम उसे भी अपने जीवन में जगह देना चाहते है. यह सुनकर चमेलियाँ का गुस्सा सातवाँ आसमान छूने लगा. वो बोली ऐसा है जी हमरे जीते जी तो इ होने से रहा. हम भी देखते है कैसे तुम हमारी सौत लाके हमारी छाती पर बिठाते हो ? ज्यादा तीन पांच किये तो हम ससुरा तोहरा ही पत्ता साफ़ कर देंगे.  बहुत देखते है हम क्राइम पेट्रोल, न रहेगा बांस तब देखेंगे हम कैसे बजेगी ससुरा तोरे प्रेम की बसुरियां. झरी घर के बढ़ते तापमान और चमेलियाँ के हिंसक होते तेवर को देखते ही अपना मोबाइल लेकर घर से खिसक लिए और एक शांत जगह पर बैठ उन्होंने सविता को मेसेज किया. सविता तुरंत ऑनलाइन आई और फिर झरीलाल ने उसे सारी बात कह सुनाई एक ही साँस में. फिर झरी ने कहा सवी हम तुम्हारे बिना नहीं रह सकते है, हम कल ही तुमसे मिलने आ रहे है और हाँ इस बार कोई ना नुकुर नहीं चलेगी तुम्हारी.
अगले दिन दोनों ने मिलने का समय और स्थान तय किया. अगले दिन जब झरीलाल नियत जगह पर पहुचें तो उन्होंने देखा अपनी प्रोफाइल फोटू से बिलकुल विलग एक साधारण सी मोटी अधेड़ उम्र की स्त्री वहां बैठ उनका इंतज़ार कर रही थी.  उन्हें देखते ही वह मुस्कुराकर बोली ओ मेरे झरी आई लब यू. झरीलाल के पैरो तले जमीन खिसक गई उन्हें लगा इस सुन्दरी के लिए उन्होंने अपनी चमेलियाँ से इतना बड़ा पंगा लिया.  मन ही मन कलपते हुए झरी बोले हाय मति मारी गई थी हमारी. आज उन्हें सविता का अपनी पूरी फोटू न भेजने का राज़ समझ आया. पहले उन्होंने सविता का यह प्रचंड सौन्दर्य देख लिया होता तो आज उनकी यूँ छीछालेदर न हो रही होती. अभी झरीलाल की हालत धोबी के कुत्ते सरीखी थी जो न घर का रहा था न घाट का. खैर उन्होंने किसी तरह सविता से पिंड छुड़ाया और फिर घर की तरफ ऐसे दौड़ पड़े जैसे उनके पीछे पागल कुत्ता पड़ा हो. घर पहुंच कर ही उन्होंने चैन की सांस ली.
अपनी बेकाबू सांसो को काबू करते हुए झरीबाबु ने दरवाजा खटखटाया तो चमेलियाँ ने दरवाजा खोला. उसका गोभी के फूल सा मुख कुम्लाया हुआ था और आंखें रोने से सूजी हुई थी. मुंह की सारी रंगत उडी हुई थी और बाल बिखरे हुए थे लेकिन इस रूप में भी झरीलाल को चमेलियाँ मेनका सी लगी. उन्होंने चमेलियाँ के सामने घुटनों के बल बैठते हुए कहा मेरी प्यारी चमेलियाँ मुझसे भारी भूल हुई है. क्या तुम मुझे माफ़ कर दोगी ? मैं कसम खाता हूँ फिर से ऐसी भूल कभी नहीं होगी.  आज के बाद किसी भी स्त्री की तरफ देखना भी मेरे लिए गुनाह है और ये ससुरा फेसबुक इस जन्म तो क्या अगले सात जन्मो में भी हम उसकी तरह देखेंगे तक नहीं. बस मेरी प्यारी इस बार हमें माफ़ कर दो. तुम्ही हमरी जिन्दगी हो.  झरीलाल की बात सुनते ही चमेलियाँ की आंखें भर आई उसने कहा सुनो जी फिर तो मुझे धोखा नहीं दोगे आप ? झरी ने उसके आँसू पूछते हुए बड़ी अदा से कहा "आई हेट टीयर्स पुष्पा" उनके इतना कहते ही चमेलियाँ हंस पड़ी उसे हँसता देख झरीबाबु के मुख पर भी सुकून की मुस्कान फ़ैल गई.
नहीं यह कोनो काल्पनिक घटना नहीं है अपितु इस सारे कथानाक के हम साक्षी रहे है, वो बात अलग है हमें संजय जैसे दिव्य दृष्टि नहीं मिली लेकिन झरी बाबू के मूह से सब सुने है हम......का समझे आप ? जी हाँ जहाँ पहुचे है सही पहुचे है आप ...........जय हो


प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल·
~अनहोनी~
आज सुबह सुबह घूम कर आते हुए बिल्ली रास्ता काट गई वो भी काली बिल्ली, अपशगुन वो भी भयंकर. दयाशंकर तो बस गए काम से, आज कुछ न कुछ उलटा होने वाला है न जाने कौन सी मुसीबत आज गले पड़ने वाली है. यह सोचकर लम्बे लम्बे पग भरते हुए दया शंकर घर की तरफ चल पड़े. परेशान दया बाबू घर पहुंचे तो दरवाजा खोलते ही उनकी पत्नी सुनयना की लाल आंखे उनका स्वागत करती नज़र आई. किसी अप्रिय घटना का आभास होते ही वह बिना कुछ कहे स्नान करने चले गए. अन्दर घुसते ही उन्होंने खुद को अंग्रेजी कमोड में टिका कर ध्यान मुद्रा में स्थापित कर लिया यह सोचते हुए कि चंचल नैनो से प्रेम रस टपकाती और मुस्कुराकर स्वागत करने वाली उनकी अर्धांग्नी की आँखों में क्यों क्रोध की ज्वाला भभक रही है ?. खुद को तीसमारखां समझने वाले दया बाबू सर खुजाते हुए कुछ न समझ पाने की स्थिति में फंसे स्वयं को असहज महसूस करने लगे...
दया बाबू हमारे उन मित्रो में से एक है जो दिखते दिखाते शरीफ है लेकिन दिल उनका आशिक मिजाज़ है. जवानी से अब तक न जाने कितनी प्रेमिकाओ के साथ उन्होंने खुद को एडजस्ट किया है. वैसे दया बाबू हमारे लंगोटिया यार है. उनकी अच्छी बुरी आदतों से हम निरंतर पहचान बनाए हुए है. उनके रंगरलियों और मंजनू सरीखे किस्सों के हम एकमात्र चस्मदीद गवाह भी रहे है. नहीं, गवाही शाररिक तौर पर नहीं बल्कि उनके मुखार बिंदु से हमें जानकारियां मिलती है और कभी सबूत के तौर पर वे हमें दूर से दर्शन करवाते भी थे अपनी छैलाओं के. हम भी धन्य हो जाते उनकी क्रीड़ाओं को देखते हुए, मन कृष्ण और गोपियों की रासलीलाओं का ध्यान करने को विवश हो उठता था हमरा. अब बढती उम्र और सुंदर पत्नी मिलने के बाद भी उनकी लीलाएं चालू है. हमने जब तब समझाया उन्हें भाई अब तुम वो नहीं रहे, अब तुम एक सुंदर, मृगनयनी, सुशील, संस्कारी स्त्री यानी हमारी प्रिय भाभी सुनयना के पति बन चुके हो पर जनाब के कानो में कभी जूं तक नही रेंगी, शायद सर पर बाल कम है इसलिए जुओं की हिम्मत न हुई रेंगने की. खुद पर उन्हें बहुत भरोसा था कि वे ऐसी कोई गलती नही करेंगे कि उनकी शादी शुदा रिश्ते पर इसकी आंच आये और अभी तक इस कसौटी पर वे खरे भी उतरे है. इसलिए हम भी आश्वस्त रहते थे...
जब से मोबाइल और नेट साईट का चलन बढ़ा है हर कोई इसी में उलझा रहता है. जी हाँ काम तो आसान हुआ ही है, लोगो से जुड़े रहने का क्रम चलता रहता है. प्रेम प्रेमिकाओ के लिए तो ये वरदान साबित हुआ यानी नैन मटक्के की फुलटुस आज़ादी. दिन रात प्रेम राग अल्पाते हुए दिल अब खूब हिलोरे लेता है. दया बाबू का भी एक मात्र सहारा उनका मोबाइल ही है. उनकी अंगुलियाँ थिरकती टाइप करती निरंतर प्रेम मेसेज बिना थके, उनके इश्क की प्यास की तरह. कमोड में आसान लगाये दया बाबू अपने दिमागी घोड़े दौड़ा ही रहे थे कि अचानक ध्यान आया कि आज सुबह घूमने जाते हुए वे अपना प्रिय मोबाइल ले जाना भूल गए. यह सोचते ही उनके शरीर में काटो तो खून नहीं वाली स्थिति आन पड़ी और उस सोच ने उन्हें आसन से खड़े होने को मजबूर किया. आनन फानन में उन्होंने कपडे उतार दो मग पानी डाला और स्नानघर से बाहर निकल सीधे मोबाइल की तरफ लपके. लेकिन वहां सुनयना डेरा जमाये हुए थी और उनका प्रिय मोबाईल उसकी मुठ्ठी में कसमसा रहा था. उनकी सांसे थम गई और शरीर बर्फ सा ठंडा पड़ने लगा. दिसंबर की कडकडाती ठण्ड में भी उन्हें पसीना आने लगा. उनकी धर्मपत्नी उनके मोबाइल का पोस्टमार्टम कर रही थी और कुछ देख रही थी बड़े ध्यान से....
दयाशंकर को याद आया मोबाइल में उनकी कई प्रेमिकाओं के सुंदर हॉट सेक्सी फ़ोटोज़ के साथ उनकी प्रेमिकाओं के साथ जो प्रेमालाप किया उन्होंने, सबकी हिस्ट्री है. बस इतना ध्यान आते ही उन्हें हिस्टोरिक दौरा पढने को हो गया. उन्हें अपनी सारी दुनिया उजडती नज़र आई. उनकी श्रीमती सुनयना से जब उनका विवाह हुआ था तब वह एक सुडौल सुंदर बाला थी जो समय के साथ साथ अपनी काया में विस्तार लेकर बला का रूप धारण कर चुकी थी. वो भलीभांति जानते थे जैसे ही उनकी करतूतों का पता उनकी धर्मपत्नी को चलेगा वो बवाल खड़ा कर देगी और सरेआम उनकी इज्ज़त का झूलुस निकाल कर रख देगी. उन्होंने हकलाते हुए कहा प्राणेश्वरी क्या हो रहा है सुबह सुबह. यह सुनते ही सुनयना ने उन्हें आग्नेय नेत्रों से घूरा तो उनका खून भय के मारे जमने सा लगा. वो लगभग गिडगिडाते हुए सुनयना के चरणों में जा बैठे बोले प्राणेश्वरी हमसे कोई भूल हुई क्या. देखो हम पागल है थोड़े से लेकिन है तुम्हारे ही प्रेमी आशिक.
सुनयना बोली तुम्हारे फ़ोन में यह इतनी सारी सुंदरियां क्यों विराजमान है ? दयाशंकर के दिमागी घोड़े पस्त होते हुए भी दौड़ने लगे. अपनी हकलाती सांसो को काबू करके दया बाबू बोले अरे डार्लिंग यह सब मेरे मित्र घनप्रसाद के लिए जो लड़कियां देखी जा रही है उनके फोटू है. सुनयना ने उन्हें संदेहास्पद ढंग से घूरा तो इन्होने फिर गुगली फेंकी. देखो जिसके पास तुम जैसी मृगनयनी सुन्दरी अप्सरा सी पत्नी हो वो इन ऐसी वैसी स्त्रियों को क्यों घास डालेगा भला. मुझे तुम्हारी कसम है मैंने आज तक तुम्हारे सिवा किसी और की तरफ देखा तक नहीं. तुम ही तुम हो मेरे दिल में आँखों में बसी. धर्मपत्नी की चढ़ी त्योरी थोड़ी कम होती देख दयाशंकर का हौसला कुछ और बढ़ा उन्होंने आँखों में मगरमच्छ से आसुओं को आसरा देते हुए कहा प्रिय गर तुम्हे मुझपर विश्वास नहीं है तो मेरे जीने का कोई औचित्य नहीं है. तुम्हारी नफरत मिले इससे अच्छा मैं मर जाऊं. उनका ये आखिरी तीर सही निशाने पर लगा उनकी धर्मपत्नी अब तक आग से बर्फ में तब्दील हो चुकी थी और दयाशंकर चैन की बंसी बजा रहे थे...
अभी तक उनकी धर्मपत्नी ने उनकी प्रेमालाप वाले सन्देश जो नहीं पढ़े थे वर्ना तो अभी उनकी प्राणेश्वरी का जूता होता और इनका सर. और फिर इनका झूलुस बड़ी शान से पूरे मोहल्ले में निकल रहा होता. उन्होंने प्यार से सुनयना का हाथ अपने हाथ में लिया और उसकी आँखों में झांकते हुए अपने फ़ोन को लेकर तुरंत अपनी जेब के हवाले किया. थोड़ी देर उसकी तारीफ के पुल बनाते रहे जब उन्हें लगा अब स्थिति पूरी तरह उनके नियंत्रण में है तो वह मुस्कुराते हुए उठे और बोले चलो आज तुम्हे अपने हाथ से चाय पिलाता हूँ मैं. सुनयना ने मुस्कुराते हुए सर हिलाया. अपनी पत्नी को ख़ुशी के झूले में हिचकोले लेता छोड़ वह किचेन की तरफ दौड़ पड़े. वहां जाके उन्होंने गैस पर चाय चढाते हुए खुद से वादा किया आइन्दा सांस लेना भूल जायेंगे लेकिन अपने प्यारे मोबाइल को खुद से एक पल को भी अलग न होने देंगे जनाब. साथ ही अपनी प्रेमिकाओं के फ़ोटोज़ भी मोबाइल में नहीं रखेंगे और उनके साथ जो प्रेम भरी बतिया होती उन्हें भी तुरंत डिलीट करेंगे. इस तरह के प्रण लेते हुए चाय की ट्रे हाथ में लेकर वो अपनी प्राणेश्वरी की खुशियों में इजाफा करने चल दिए एक विजयी मुस्कान के साथ और हम उनके साथ घटी इस घटना से सबक लेने का प्रण कर यहाँ आ पहुंचे.....


नैनी ग्रोवर
~गिरधारी बाबू~

सरकारी कार्यालय में कार्यरत गिरधारी बाबू मुम्बई गोरेगांव में अपनी अड़तीस वर्षीय पत्नी एवम् तीन बच्चों के साथ मध्यम वर्गीय घर में रहते हैं...जिनमे बेटे और एक बेटी है..पहले गिरधारी बाबू पटना में थे अभी आठ माह पहले ही तबादले में मेरे पड़ोसी बन कर मायानगरी आ पहुंचे हैं..
उनकी पत्नी कमला की आवाज़ें तो पूरी सोसाइटी में सुबह से ही सुनाई देने लगती हैं.. अजी उठ जाओ ऑफिस जाना है के नहीं.. कभी बच्चों पर चिल्लातीं.. वैसे सोसाइटी में सबको मालूम हो चुका था के गिरधारी बाबू कमला से दबे दबे ही रहते हैं.. खैर मुलाक़ात हो गई ना गिरधारी बाबू के परिवार से.. चलो अब आगे क्या हुआ ये देखते हैं...
कुछ दिनों से गिरधारी बाबू में बदलाव आने लगा.. बालों को रंग दिया.. अब वो हाथ की सिली शर्ट की जगह मॉल से खरीदी शर्ट पहनने लगे.. शेव भी रोज़ होने लगी.. कमला ठहरी घर के काम के बोझ की मारी उसका तो ध्यान ही नहीं गया.. सात बजे घर आने वाले गिरधारी बाबू अब आठ बजे तक आने लगे.. ऐसा क्यों हो रहा था जानते हैं ? नहीं ना ? तो सुनिए...
गिरधारी बाबू के ऑफिस जाने वाली ट्रेन में उन्हें रोज़ एक सुंदरी के दर्शन होने लगे थे.. फर्स्ट क्लास के डब्बे में बैठे जब गिरधारी बाबू ने उसे पहली बार देखा तो उनका दिल हिचकोले खाने लगा और गुनगुनाने लगा...
ना कजरे की धार ना मोतियों के हार,
ना कोई किया श्रृंगार, फिर भी कितनी सुंदर हो...
वो सुंदर कामिनी रोज़ अंधेरी से ट्रेन में पधारती थीं.. और गिरधारी बाबू रोज़ उनके लिए अपनी सीट का त्याग कर सुंदरी के पास उसके मदहोश कर देने वाली सेंट की खुशबु लेते हुए खड़े खड़े ही ऑफिस जाते थे.. धीरे धीरे हेल्लो से शुरू हुई बातचीत बढ़ने लगी थी.. और आज तो कमाल हो गया जब सुंदरी ने स्वयं उन्हें अपना मोबाइल नम्बर दिया और उनका नम्बर भी मांग लिया.. गिरधारी बाबू तो फूले ना समाये.. सीधा साधा मोबाइल यूज़ करने वाले गिरधारी बाबू उसी दिन नया फोन खरीद लाये.. रात 9 बजे पत्नी किचन में व्यस्त थीं उन्होंने डरते डरते पहला व्हाट्सएप्प मेसेज भेजा .. क्या कर रही हैं ...?,
दस मिनट बाद जवाब आया... कुछ नहीं टीवी देख रही हूँ..,इसके बाद तो रोज़ दिन में जाने कितनी बार मेसेज का सिलसिला चल पड़ा.... ब्रेकफास्ट से लेके डिन्नर तक क्या खाया आज क्या हुआ... करीबन 2 माह बाद
आज कुछ मूड़ अच्छा नहीं...
अरे क्या हुआ बताइये तो सही...
फिर कभी....
इसका मतलब आप मुझे अपना दोस्त नही समझती हैं ना...
नही नहीं ऐसा नहीं है.. अच्छा कल बताउंगी
क्या आप कल शाम को मिल सकते हैं ?
हाँ हाँ जहाँ आप कहें...
तो ठीक है आप 8 बजे चौपाटी आ जाइयेगा ...
ज़रूर...
दूसरे दिन गिरधारी बाबू छैला बनकर घर से निकले..सुंदरी ट्रेन में नहीं आई.. चलो शाम को तो मिलना ही है..
दो दिल मिल रहे हैं मगर चुपके चुपके ... गुनगुनाते हुए दिन बिता दिया उन्होंने..
शाम को ऑफिस के वाशरूम में जाके खुद को संवारा और निकल पड़े चौपाटी .... टेक्सी से उतरते ही सामने सुंदरी नज़र आई.. उफ़ दिल की हालत पे कैसे काबू पाया गिरधारी बाबू ने वही जानें... दोनों एक तरफ जाके बैठ गए सुंदरी के लिए उन्होंने रेत पर अपना रुमाल बिछा दिया... कुछ खायेंगी ले आऊँ बोरी भर शक्कर की मिठास सा पूछा उन्होंने..
नही.. मुझे भूख नहीं..
अच्छा कोई नही .. अब बताइये क्या बात है..
कैसे बताऊँ... आपसे कोई ऐसा रिश्ता भी तो नहीं..
ये क्या बात कही आपने.. क्या हम दोस्त भी नहीं... दिल तो बहुत कुछ कहने का था पर हिम्मत साथ नहीं दे रही थी...
वो बात ये है के हम भी इस शहर में नए ही हैं .. मैं नोकरी करने ही मुम्बई आई हूँ... मेरे साथ मेरा एक भाई भी रहता है.. अचानक मालिक मकान ने घर खाली करने का नोटिस दे दिया है.. और हमारे पास तो डिपॉज़ट तक नहीं.., क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा ...
ओह .. अच्छा दूसरा घर देखा क्या ? कितना डिपॉज़िट है ?
एक लाख... मगर अभी मेरे पास नहीं है.. कंपनी छ महीने से पहले एडवांस नहीं देती.. और उसमे अभी एक महीना बाकी है..,
गिरधारी बाबू के दिल की दीवार पर प्रेम का अथाह सागर अपनी लहरें पटकने लगा... आप चलिए मेरे साथ उन्होंने सुंदरी का हाथ पकड़ते हुए कहा.. फिर चार एटीएम से पैसे निकाल कर सुंदरी का पर्स ले के खुद उसमें रखे...कल सुबह ही जाकर डिपॉज़िट भर दीजिये .. और लौटाने की जल्दी नही, जब कंपनी देगी लौटा दीजियेगा... उन्होंने प्यार से सुंदरी का कन्धा थपथपाते हुए कहा...
आज वो बहुत खुश थे.. किसी अल्हड़ प्रेमी की तरह...सारा रास्ता सुंदरी का चेहरा दिलो दिमाग पर छाया रहा.. घर पहुंचे तो रात के ग्यारह बज चुके थे.. परन्तु ये क्या.. सामने सोफे पर उनकी पत्नी के साथ सुंदरी विराजमान थी... गिरधारी बाबू का दिल ही नहीं लीवर और किडनियां भी धम धम करने लगीं.. हाथ पाँव से पसीना यूँ बहने लगा मानो भरी दोपहर में किसी ने उन्हें जलती रेत में खड़ा कर दिया हो.. कमला की आँखों से अग्नि प्रज्वलित हो रही थी.. मारे गुस्से के उसने पास रखा गुलदान उठा कर गिरधारी बाबू को निशाना बनाया.. मुश्किल से ही बच पाये नए नवेले प्रेमी...
इसे पहचानते हो ? ये सुंदरी है मेरी मौसी की लड़की..और बचपन की सहेली.. इसी ने मुझे बताया के तुम भी उसी डब्बे में होते हो जिसमें ये जाती है.. और रोज़ इसके लिए जगह खाली करते हो.. इसने तुम्हारी तस्वीर देखी हुई थी.. इसलिये पहचान गई.. पर मेरी शर्त थी के तुम कभी भटक नहीं सकते.. पर तुम तो मियां बड़ेआशिक मिजाज़ निकले... मुझसे तो नही करते अब ये आशिको वाली बाते.....पढ़े मैंने तुम्हारे प्रेम सन्देश सुन्दरी के मोबाइल में ... छी छी कमला चिल्लाती रही  सुंदरी अपनी जीत पे मुस्कुराती रही.. और गिरधारी बाबू को तो मानो अगर चुल्लू भर पानी मिल जाता तो उसी में अपनी नाक डुबो देते.. कमला की कर्कश आवाज़ और दहाड़ें मार मार कर रोना मुझे उनके घर तक खींच लाया.. मुश्किल से मैंने और कुछ पड़ोसियों ने उसे थोड़ा शांत किया.. पर अब भी वो गिरधारी बाबू को यूँ घूर रही थी मानो बस चले तो सिल पे रख बट्टे से पीस दे उन्हें.. हम आस पड़ोस के लोगो ने किसी तरह कमला को शांत किया .... अगले दिन कमला ने खुद ही बताया कि गिरधारी बाबू तो दोनों कान पकड़े रात के दो बजे तक उस के आगे घुटनो के बल बैठे रहे...शायद दिल में यही गुनगुनाते हुए ... काल के पंजे से माता बचाओ, है माँ अष्ट भवानी माँ....!! और तब से गिरधारी बाबू मोहल्ले में नज़र उठा के नही चलते....


Ajai Agarwal
----मोबाइल महिमा ----

बच्चे विदेश में हों, फोन की प्रतीक्षा और सिगनल गायब, माँ की परेशानी देखते ही बनती है, बांदर की भांति मोबाइल को ले उछलकूद मचाती है कभी ऊपर कभी नीचे, अंदर बाहर, बागीचे में यहां तक कि बाथरूम में भी। कम्पनियों - सरकार पे क्रोधित होती हुई सच में ही उसका मुहं गोणी की मानिंद काला हो जाता है, क्रोध चिंता औ झुंझलाहट में जल भुन के। ऐसी स्थिति में मैं,  अक्सर द्वापर - त्रेता युग में चली जाती हूँ जब आकाशवाणी होती थी किसी भी घटना दुर्घटना के लिए, किसी को शाप या वरदान देने के लिए -- सोचती हूँ ये भी तो हमारे आकाशवाणी के दूरदर्शन केंद्र सा ही कुछ रहा होगा, तब 3G ,4G--कौन सा सिगनल आता होगा ?  उस युग के अम्बानी नारद मुनि ही रहे होंगे ! फिर अपने बचपन को याद करती हूँ, जहाँ टेलीग्राम , std , ट्रंकाल, चिट्ठियां - इस मुए मोबाइल के सिगनल की कोई चिंता ही नही थी। ऐसी ही स्थिति में फंसी एक दिन बाहर गेट पे खड़ी -खड़ी नारद मुनि को याद कर रही थी। हाथ में मोबाइल था, बच्चों का फोन आना था पर सिगनल नहीं आ रहा था --सारे सर्विस प्रोवाइडर्स को बड़ी -बड़ी गालियां दे रही थी और सोच रही थी, नारद मुनि के पास भी तो संचार मंत्रालय रहा होगा, वो भी क्या कॉल ड्राप का पैसा देते होंगे, किस देवता के पास कौनसा फोन होगा, संजय ने गीता मोबाइल पे देखी होगी या लैपी पे, तब क्या व्हट्स आप होता था ? तभी फोन घनघनाया -- इतनी तेज आवाज....
-हेलो ! स्वीटहार्ट मुझे याद किया ,मैं नारद मुनि बोल रहा हूँ।
नारद मुनि ! आवाज तो जानी पहचानी है ; पर किसकी है !
कौन हो भाई ! अरे पहचाना नही, नारद हूँ, द्वापर में मैं और तुम साथ खेलते थे -- त्रेता में तो तुमने मुझे मना भी किया था स्वयंबर का लालच करने से --
मुझे तो मूर्छा आने लगी, ये कहाँ का सिगनल मिल गया, मेरी तो एंटीना वाली चुफली ( चोटीवाले की चुटिया टाइप) भी नही, पर आवाज तो सच में किसी अपने सगे की ही लग रही है -- ओह ये मुझे क्या हो रहा है, ये हैल्युसिनेसन है या मैं सच में बात कर रही हूँ -- -इतने में ऊपर कोई जहाज गुजरा - गरुड़ की आकृति का - मैंने देखा उसका दरवाजा खुला है और नारद मुनि शम्मी कपूर की ईइशटाइल में लटक रहे हैं -- आसमान से आया फरिश्ता गाते हुए -- मुझे खुश होना चाहिए था अपने युगों के बिछड़े सखा को देख कर --पर कलयुग का प्रभाव देखिये;  मैं घबरा गई ,ऐसा भी कभी होता है, मोबाइल मन की तरंगों से चल रहा है -- और दृश्य भी साकार हो रहे हैं क्या मैंने विडियो चला दिया इसी लिए फोन नही लग रहा ( अभी टेक्नोलोजी से फैमिलियर नही हूँ न ) --कहीं कोई क्रिमिनल न हो, जल्दी से स्विच आफ कर दिया - -पर नारद मुनि भी ठहरे पुराने सर्विस प्रोवाइडर, वो सामने आ खड़े हुए, जहाज से कूद के -- बोले सखी, देवताओं के पास नहीं हैं मोबाइल फोन, ये सुख तो धरती पे ही उपलब्ध है, ऊपर तो आज भी मैं ,गरुड़ और नंदी ही समाचार लेके चलते है, पर हाँ कल नंदी धरती की घास खाने आया तो उसने एक मोबाइल भी निगल लिया,  आज सवेरे जब वो गोबर में निकला तो मैं वहीं था -- मैंने उसे साफ़ किया और उसपे फेस बुक एवं व्हाट्स आप अप लोड कर भोले भंडारी को चुपके से दे दिया -- तब से भोले बाबा स्क्रीन के आगे बैठे हैं पूरी तन्मयता से, मानो तपस्या कर रहे हों या समाधी में चले गये हों -- जैसे तब गये थे जब माँ पार्वती ने राम की परीक्षा के लिए सीता का रूप धरा था| सुन सखी तुझे राज की बात बताऊं वो दृश्य भी भोले को मैंने ही दिखाया था वैसे ही जैसे संजय ने कुरुक्षेत्र का आँखों देखा हाल सुनाया था -- ---वो पार्वती से छुप -छुप के मेसेज कर रहे हैं धरती की सुंदरियों को - मोबाइल स्क्रीन में देख रहे हैं और फुसफुसा रहे हैं -वाह क्या मझेदार यंत्र है ,''भोले पूरी तन्मयता से मोबाइल के आगे बैठे हैं, कभी फेसबुक कभी व्हाट्स आप ----तभी भोले की तस्वीर आई --एक सेकंड में लाइक करिये और सारी विपत्तियाँ दूर --वाह वाह ये तो मेरी तस्वीर पे चटका मारने से भी सारी विपत्तियाँ एक मिनट दूर हो जाती हैं ,क्या गजब, मुझे तो ये ज्ञान ही नही था '' --- कल से पार्वती परेशान हैं ,भोले एकांत में क्यों बैठे है बात भी नहीं कर रहे , --अब तो मुझ से त्रेता युग जैसी कोई भूल भी नहीं हुई |माँ ने सोचा भोले को घुमाने ले जाया जाय और घूमने के लिए धरती से सुंदर जगह और कहाँ ? आज माँ भोले को लेके धरती भ्रमण पे निकली हैं --अब मैं डर रहा हूँ ये मोबाइल कोई पंगा न कर दे --सखी तू खड़ी दिखाई दी तो तुझसे सम्पर्क किया --प्लीज् मेरी माँ बहुत भोली हैं आज की रात उनके साथ रहना >
शिव पार्वती सृष्टि भ्रमण पे निकले हैं --भेष बदल के --आज के नर-नारी की भूमिका में ,रात्रि के बारह बजे थे , सभी सो रहे होंगे -सोचा होगा , हैसल फ्री भ्रमण हो जाएगा ,वरना तो आजकल पृथ्वी पे जाम का झाम रहता है गयी रात तक।पर जुलाई का महिना था ,कांवड़ सीजन चल रहा था --हरिद्वार से दिल्ली तक सभी भोले के भक्तों ने सड़कों पे कब्जा किया हुआ था। तभी माँ पार्वती ने देखा --एक भक्त के पास छोटी सी डिब्बी जैसा कोई यंत्र है (वैसा ही जैसा नारद ने शिव को दिया और तब से शिव अजीब सी चेष्टाएँ कर रहे हैं ) ! उसने उँगलियों को टप -टप चलाया उस डिब्बी पे और कुछ गाने जैसे सुर निकलने लगे ----
'' मैं न घोटूं तेरी भांग ओ गणेश के पापा मैं अपणे पीहर चाली ''--
माँ ने चकित मुद्रा में शिव को घूरा --गणेश के पापा तो आप ही हो स्वामी ,पर मैंने तो कभी भी भांग घोटने से मना नहीं किया ; ये दूसरी कौन है ? पार्वती ने क्रोधित पर व्यंग पूर्ण मुद्रा मे शिव को देखा ! शिव डर गये , कल से कई सुमुखी सयानी सखियाँ बना ली थीं ,उनके मधुर संदेश ,हाय शिवा यू आर टू हॉट ,यू लुक डैशिंग ,योर ड्रेसिंग सेन्स इस यूनिक ,वाव डार्लिंग आपके हेयर कितने ट्रेंडी हैं ,क्या लगाते हो ,डार्लिंग मुझे तुम्हारा ये बाघम्बर बहुत पसंद आया ,कब मिलोगे मेरे लिए भी एक ले आना ,मैं अपने ड्राइंग रूम में सजाऊँगी ,और शिव अभी भी कुछ सन्देश पढ़ रहे थे --इंसानी भेष में थे तो मन में इंसानों वाली गुदगुदी भी हो रही थी पर पार्वती का रुख भांप प्रत्यक्ष में थर-थर काँप भी रहे थे | गाना आगे बढ़ा ---
''शाम सवेरे मोसे भांग घुटवावे , नंदी पे बिठा के कदि सैर न करावे -
मेरी दुक्खे नरम कलाई ओ गणेश के पापा ,मैं अपने पीहर चाली --'' ---
शिव की हालत काटो तो खून नहीं ,किस कु घड़ी में घर से निकले ,और ये है कौन ? कहीं कोई फेसबुक फ्रेंड तो नहीं ,पार्वती के क्रोध से डर लगने लगा | इन्हें मालूम पड़ा मैं एकांत में फेसबुक की सुन्दरियों से बात कर रहा था तो वो साक्षात काली बन जायेंगी , ये तो मुझे भाभी लछमी से भी मजाक नही करने देती हैं !
भोले बाबा कल से मोबाइल पे चिपके थे तो गिल्टी भी थी । तभी मोबाइल की घंटी बजी ,शिव ने हेल्लो कहा और बिजली की सी फुर्ती से पार्वती ने मोबाइल शिव से छीन अपने कान पे लगा लिया --दूसरी ओर से मधुर आवाज --
हेलो ! मुझे शिव से बात करनी है ,आप कौन है ?
पार्वती --बेटा, मैं पार्वती बोल रही हूँ। क्या काम है ?
जी शिव घर पे होंगे ,मुझे उनसे मिलना था --और गाना चालू ---'' मन्नै भोले से था काम ,भोले कठै मिलेंगे --ओ मेरे शिव कठै मिलेंगे , अरे मैं तो शिव की होली दीवानी शिव कठे मिलेंगे ---
''अब तो माँ का गुस्सा सातवें आसमान पे --आँखे लाल -लाल , शिव शंकर ,कौन है ये बेशरम जो पार्वती भी बन गयी थी एवं अब तुम्हारी दीवानी भी कह रही है अपने को ---- , शिव बेचारे माँ के आगे खड़े थर-थर कांपते '' ---प्रिये ! मुझे क्या पता ,जैसे तुम जग- जननी हो मैं भी जगत - पिता हूँ ,होगी कोई मेरी भक्त |जगत पिता मानव भेष में सामान्य स्त्री बनी जगद्जननी के आगे थर-थर कांपते खड़े सोच रहे हैं --ना जाने क्या बवाल कर दे देवी ? शिव ने पार्वती को मनाने की असफल सी कोशिश की -''-पर भोली भाली माँ तो क्रोध से काँप रही थी एक साधारण स्त्री की तरह और शिव उनके आगे खड़े चोरी पकड़ी गयी हो जिसकी उस पति की तरह काँप रहे थे '',भक्त है तो पार्वती बन के भांग भी घोट रही है और नखरे भी दिखा रही है , कल नारद आये थे न नंदी से बात कर रहे थे फिर आपको ये यंत्र दे के गये थे सब कोई कुचक्र है ,नंदी की भी मिली भगत है --चलिए हिमालय उस निगोड़े की भी खबर लूंगी --
मैं ये सब देख रही थी ,नारद मुनि की कृपा से ,मोबाइल में सब रिकार्ड हो रहा था --दिव्य दृष्टि टाइप --मैं दौड़ी हुई माँ के पास गई उन्हें अपना मोबाइल दिखाया ,सब समझाया फिर मोबाइल की महिमा और लत दिखाने उन्हें बगल के घर में ले गई --वहां बहू ,सास -ससुर ,नन्द ,ननदोई ,देवर बच्चे सभी बैठे थे हाथों में मोबाइल लेके . सबभी अपने में मग्न। उन्हें हमारे आने की भनक भी न पड़ी --माँ को बड़ा अचरज हुआ --देखा , रात्रि के बारह बजे पर घर में खाना नहीं बना --चूल्हे पे दाल चढ़ी थी वो जलने लगी तो सास चिल्लाई , अरे कोई गैस बंद कर दो--बहू भागी हुई किचन में गई - ओफहो --अब क्या होगा --उसने जली दाल संग सेल्फी खींची और फटाफट फेसबुक और व्हाट्स आप पे अपलोड कर दी ,''रात के बारह बजे हमारी दाल जली '' --बहू की डीपी मस्त थी तो मिनटों में पांचसौ सन्देश आ गए --बहू खुश ,सास-ससुर से बोली। अम्मा-बाउजी आप लोग भी जली दाल संग सेल्फी लेंगे क्या या मैं इसे सिंक में रख दूँ। रख दे बहू हमें थोड़े ही लाइक मिलेंगे --हमने अपनी असली फोटो लगाई है ,तेरी तरह फोटोशॉप करके नहीं , चल अब पिज्जा आर्डर कर दे आशचर्य देखिये और किसी के भी कान पे जूं भी नहीं रेंगा --सभी अपने मोबाइल में मग्न थे। ---
बस माँ यही निगोड़ा मोबाइल है ,जिस पे आपने कांवड़ियों के बनाए गाने सुने और उन्हें सच समझ बैठीं ,इस निगोड़े ने लोगों के सोचने समझने की शक्ति खत्म कर दी है ,बस में रेल में ,जहाज में ,सुबह की सैर में ,हर जगह ये कान पे रहता है ,अब किसी को समाज से कोई मतलब नहीं ,घर में भी लोग मोबाइल पे ही बात करते हैं ,एक दूसरे के कमरे में नहीं जाते ,बूढ़े बूढ़े भी कमसिन बालाओं को हेलो ,हाय ,हाउ क्यूट ,गॉर्जियस -कहके अपने को धन्य समझते है --साठ साला सुंदरी अपनी बीस साल वाली डीपी लगा के हाउ क्यूट का मजा लेती है।
माँ बोलीं बिटिया ये तो नारद मुनि से भी तेज है ,तुम तो पल में सभी से बात कर सकते हो ,फिर इसका दुरूपयोग क्यों कर रहे हो , मैं क्या कहती --कल ही बगल वाली मिसेज घोष और मिस्टर घोष में तू तू मैं मैं हुई थी ,दोनों के मोबाइल बदल गए थे और दोनों ने एक दूजे के गर्ल - ब्वाय फ्रेंड के मैसेज पढ़ लिए थे , वो तो दोनों फेक निकले वरना बनी बनाई गृहस्थी टूट जाती। मिसेज चौबे जिस फेस बुक फ्रेंड से मिलने गईं बनठन के वो उनका माली निकला तथा मिस्टर और मिसेज मिश्रा तो इतने दिनों से एक दूसरे से ही रोमांस कर रहे थे --मिलने पे पोल खुली तो शर्म के मारे चुप ही रहे . अब माँ को समझ आ चुका था --ये पृथ्वी है और यहां किसी भी आविष्कार का उपयोग से दुरूपयोग अधिक है --माँ बोली शुक्र है अभी स्वर्ग में ये बीमारी नहीं है -- मैंने कनखियों से शिव को देखा ,उन्होंने कान पकड़े और हाथ के मोबाइल को चुपके से पीछे फेंक दिया --जगत माँ और जगत पिता वापस हिमालय जा रहे थे और नेपथ्य में गाना बज रहा था सुनलो ऐ गणेश के पापा ,मैं मेहँदी ,लगाउंगी ,आज भांग न घोटूंगी न नंदी को नहलाऊंगी ,गणेश और कार्तिकेय को झूला भी ना झुलाऊँगी ,कांवड़ियों के संग सेल्फी खींच के मैं दुनिया को दिखाउंगी। तभी मेरे जन्मों के बिछड़े सखा ने मुझे फ़्लाइंग किस दिया और ये जा और वो जा |


Madan Mohan Thapliyal
******सॅा'री ( sorry) एक व्यंग्य ******

व्यंग्य ऐसी विधा है जिसके कई रूप हैं -इसको परोसने वाला निहायत चतुर होना चाहिए.व्यंग्य वैसे आम बोलचाल की भाषा है लेकिन यह एक साथ कई अर्थ समेटे होता है. हो कुछ रहा है, कहा कुछ जा रहा है और समझा कुछ और ही जा रहा है. इसमें भाव पक्ष बहुत सक्षम होता है. इसकी खूबी यह है कि -- इसे कोई समझ जाता है, कोई समझने का ढोंग करता है और कोई बदला लेने पर उतर जाता है. कभी -कभी कहने वाला और सुनने वाला दोनों ही हंसी के पात्र बन जाते हैं और कई बार सुनने वाला इस गठरी को जिन्दगी भर ढोता है.
सुरेन बचपन का अपना लंगोटिया यार, सीधा- कुत्ते की दुम की तरह, नाहक शरीफ- किसी की भी लुटिया डुबो दे, हर बात में लट्ठ गाड़ने में माहिर, गांव भर का दुलारा लेकिन अक्ल का मारा, धुन ऐसी कि छोड़ते नहीं छूटती उसको अपनी बड़ाई सुनने का बड़ा शौक था, गांठ का पूरा.मजाल क्या जो बात दिमाग में एक बार घर कर जाए, कपड़े धोने के बेहतरीन पाउडर से भी नहीं धुलने वाली, हो भी क्यों न अपना 2 चरित्र है,उधार का थोड़े ही है, आंच नहीं आ सकती, कितनी भी मनुहार कर लो. औरों के लिए व्यंग्य का कुबेर - कहीं सफेदी हो रही हो, तड़ाक से बोल देगा, चूना लगा रहे हो क्या ? समझने वाला समझे न समझे इसकी बला से इसको तो लोगों को उल्लू बनाना है.
सभी साथी चाहे लड़के हों या लड़कियाँ, इसके व्यंग्य के शिकार कई दफे हो चुके थे. वैसे वो था सबका दुलारा.सभी साथी उसके रूप, रंग, ज्ञान, हिम्मत,बहादुरी के यदाकदा कशीदाकारी कर ही देते और सबने उसके दिमाग में कुछ ऐसा भर दिया कि वो अपने को कामदेव का अवतार ही समझ बैठा. कई रिश्ते आए , कोई पसन्द नहीं, कहीं रंग रूप आड़े आता कहीं शरीर की कदकाठी, रूपसी तरुणी भी उसके अहं को डिगा नहीं सकी. समय होत बलवान - देखते 2 उम्र पहुंच गई पैंतीस के पार, यहाँ कामदेव का अवतार, इन्द्र की अप्सराओं का इन्तजार. हाय रे! तकदीर, अब तो रिश्ते आने भी लगभग बन्द से हो गए.
इसी अवसाद में सुरेन सभी दोस्तों से कटकर रहने लगा और साथी भी उससे दूरी बनाने लगे.घर वाले परेशान, दोस्तों की कब की शादी हो गई कई तो माँ, बाप का सुख भी भोगने लगे हैं, बच्चों की किलकारी सुरेन के माता पिता के दिल पर घाव करने लगी, अक्ल के घोड़े कब के बिक चुके थे. एक दिन ये भी सुरेन को सबसे खूबसूरत गबरू जवान समझते थे, लेकिन अब सब हार चुके थे.हारकर, सुरेन के पिता ने उसके दोस्तों को बुलाया और अपने दु:ख को उनके सामने रखा. आप लोग ही उसको समझा सकते हो,मेरे ऊपर उपकार कर दो. उसको समझा बुझा दो, आजतक हमने भी उसका साथ दिया, अब लगता है यह हमारी मूर्खता थी. आखिर मेंढकी को जुकाम हो ही गया.सबने गोष्ठी की और तय किया कि बहुत हो चुका, हमारे विश्वास ने उसकी बुद्धि को कुन्द कर दिया अब और नहीं. सारे सुरेन के पास गए, मिन्नतें की और कहा, यार तू सुन्दर है, गुणवान है, बुद्धिमान है लेकिन जिन लड़कियों के रिश्ते तेरे लिए आए वे सारी कुलीन परिवार से थीं, सुशील,संस्कारित, गुणवान थीं लेकिन हमने तेरी बुद्धि पर खूबसूरती का पर्दा डाल दिया था, हम तो समझते रहे जिस प्रकार तू अपने व्यंग्य बाणों से हमें परेशान करता रहा उसी प्रकार हमने भी सुन्दरता का दिव्य व्यंग्य तीर छोड़ कर तेरी बुद्धि् भ्रमित कर दी.हम सब उसी प्रकार मिलकर रहेंगे जैसे पहले रहते थे, कहावत याद है न -- 'आठ कनौजिया नौ चूल्हे', अब ऐसा कभी नहीं होगा.
सुरेन की समझ में सब आ गया, यह सब उसी का बोया हुआ है, उसने शादी के लिए हाँ भर दी, सबके चेहरे खिल उठे.घर भर में खुशियों का पदार्पण लेकिन कब तक. सुरेन जो अब तक नहीं सुधरा अब क्या खाकर सुधरेगा, कुत्ते की दुम छ: महीने पाइप में रखो फिर टेढ़ी. घर में रोज बखेड़ा, सारा ध्यान केंद्रित हुआ सरल हृदया पत्नी की ओर. अरे ! तुमने पानी गरम नहीं किया, देखो दोपहर होने को आई है, मेरी आज्ञा का उल्लंघन किया तो अच्छा नही होगा, कभी - पानी अधिक गरम क्यों किया, सब्जी में नमक अधिक हो गया, देखो जब मैं भोजन करूँ तो तुम मेरे सामने खड़ी रहा करो नहीं तो.... ये उसके रोज के जुमले बन गए थे... इस बीच सुरेन को मोबाइल में सोसियल साईट में फ्रेंड्स का चश्का लग गया थे  वो खुद वहां व्यस्त रहता और जब वहा से छूटता तो बीबी से उलझा रहता उस फव्ब्तियाँ कसता रहता.  बीबी तो परेशान लेकिन अब आस पड़ोस के लोग भी उस सब से परेशान रहने लगे. और हम लंगोटिया यार सब कुछ देखसुन कर भी जुबान सिये रहे अपनी.
एक दिन सुरेन ने किसी बात पर नाराज होकर कहा "तुम्हारे मायके वालों ने इतना भी नहीं सिखाया कि पति धर्म का पालन कैसे किया जाता है?"
बस इस वाक्य ने ज्वालामुखी का आह्वान कर ही दिया. जैसा सभी जानते हैं लड़की सब यातनाएं सह लेगी लेकिन मायके के विरुद्ध एक शब्द भी, कयामत ला सकता है. संस्कारवान बहू आज सभी सीमाओं को लांघने को तैयार, आज पानी सर के ऊपर से गुजर गया. बहुत सह लिया अब और नहीं. अंगद की तरह जमीन पर पैर जमाकर जोर-जोर से चिल्लाने लगी, मैं तंग आ चुकी तुम्हारी नहीं तो-नहीं तो सुन सुनकर, नहीं तो क्या कर लोगे, खुद तो रत्तीभर काम नहीं करते, दिन रात मोबाइल में न जाने किस को अपने जाल में फंसाए हो, हम इससे अनजान नही है बस अब तक कहा कुछ नहीं. और यहाँ बेचारे माँ -पिता अलग परेशान, आपके हाथों में क्या मेहँदी लगी है जो काम करने से घिस जाएगी. मैं आज से सास-ससुर की सेवा करूँगी और तुम अपना काम खुद करोगे, नहीं तो..... नही तो तुम्हारे ये मोबाइल में जो गुल खिलाते हो न उसका भांडा फोड़ कर दूंगी....  सुरेन की हिम्मत नहीं हुई कि नहीं तो क्या... के आगे क्या कहे? पत्नी के आगे उसकी ऐसी हालत हो गई, मानो काटो तो खून नहीं. उस दिन सभी को लगा कि आज आया ऊँट पहाड़ के नीचे.
भीगी बिल्ली बना सुरेन ने नम्रता पूर्वक बस इतना ही कहा, मुझे माफ कर दो, अब वही होगा जो तुम कहोगी, पत्नी ने जो तीर निशाने पर मारा था उसकी इतिश्री हो गई. भारतीय संस्कृति की मर्यादा में पली बहू को ग्लानि हुई लेकिन धनुष का संधान तो हो ही चुका था. इधर घर के सारे लोग खुश, सबने मन ही मन बहू का धन्यवाद किया. इतनी देर में हम सब वहाँ एकत्र हो गए थे, सबने एक स्वर में कहा, अब व्यंग्य और नहीं ------- sorry
- शैल

Kiran Srivastava
"अचानक भयानक"
===================

गर्मी की छुटटीयां समाप्ति की ओर..सोसाइटी में महिलाओं का आगमन जारी ।मिसेज शर्मा सुबह से दो-तीन बार फोन लगायी लेकिन शर्मा जी ने उठानें की जहमत नही उठाई वो ठहरे घोडे बेचकर सोने वाले। नींद खुलने पर सबसे पहले फोन ही उठाते आज श्रीमती जी के तीन कॉल...शर्मा जी का माथा ठनका ।एक अनजानी आशंका ,उन्होने झट फोन लगाया...उधर से आवाज आई हलो कहां थे ,तीन बार मैनें फोन लगाया ...अरे प्रिये मैं तुम्हारा फोन न उठाऊं ऐसा हो सकता है क्या..।फोन डिस्चार्ज हो गया था ।अच्छा बताओ क्या हुक्म है ... शरारती अंदाज में शर्मा जी बोले। जाओ एकसप्ताह और तुम आजाद हो..?(शर्मा जी खुशमखुश ..मन मयूर नाचने लगा ..।) नृत्य को विराम लगा अन्जान बनते हुए क्या कह रही हो मै कुछ समझा नहीं । ये बताने के लिए फोन किये थे कि इस सप्ताह मत आना मैं अगले सप्ताह आऊंगी । बडी भाभी आने वाली है उनसे मिले दो साल हो गये हैं। फिर पता नहीं कब मुलाकात हो । बच्चे भी जिद्द कर रहे है । आगे जैसा प्रोग्राम बनेगा बता दूंगी ।
अरे भाग्यवान तुम्हारी याद में मैं आधा हो गया हूं तुम हो की( पेट पर हाथ फेरते हुए शर्मा जी बोले)। एक हफ्त्ते की तो बात है श्रीमती जी के फोन कट करते ही
शर्मा जी बेकाबू घोडे की तरह कुलाचे मारने लगतें हैं । मानो मनमांगी मुराद मिल गयी हो ,तुरन्त दोस्तों को फोन मिलाया और खुशखबरी दी , इस शनिवार यहां फिर पार्टी पक्की ।
शाम होते शर्मा जी के घर उनके दोस्तों का आना शुरू हो गया ।खुब चहल-पहल थी खुब मस्ती धूम धडाम...।
मिसेज शर्मा भी कहां कम थीं ,उन्होनें तो शर्मा जी को जबरजस्त झटका देने का इरादा बनाया था । ....वैसे मुझसे हमेशा बात होती हम दोनों का फ्लैट आमने सामने ... लेकिन इस बार मुझेभनक नही लगने दी।
रविवार की दोपहर सोसायटी में टैक्सी रूकी ।मैं बालकनी में कपडे डाल रही थी ,ये देखने के लिए की कौन है रूक गयी अरे ये तो मिसेज शर्मा है । ऊपर
आने पर हाय हलो हुआ ।मैनें पूछा बच्चे नही आए तो उन्होने बताया कि दो दिन बाद भाई के साथ आयेंगे ।मैने चाय के लिये पूछा तो मना कर दी,शाम को मिलतें हैं कह मैं अन्दर चली आयी।
मिसेज शर्मा घर की एक चाभी उन्होंने अपने पास रखी थी ,दरवाजा खोल सीधे अन्दर...।
पैंट शर्ट जूते पहने शर्मा जी सोफे पर उल्टा लेटे खर्राटे ले रहे थे ।सिगरेट का बदबू वियर की खाली बोतले जुठे बर्तन उफ....सोचा था की घर अस्त -व्यस्त होगा ... पर ऐसी काया पलट की उम्मीद नही थी।समझ में नही आ रहा था कि शर्मा जी पर चिल्लाए या अपना बाल नोचे...पर संयम से काम लेते हुए शर्मा जी का फोन आन किया और अटैची लेकर कमरे में चली गयी।
फोन की घंटी से शर्मा जी की नींद टूटी कौन इतने सुबह- सुबह। हलो दूसरे
तरफ से श्रीमती जी का आवाज
कहाँ हो ....? घर में हुं इतनी सुबह सुबह..
दोपहर है जनाब आंखे तो खोलिए शर्मा जी अधखुले आंखों से घडी पर नजर डालतें हैं । तुम्हारी यादों में रात में नींद जल्दी आती नहीं सुबह आंख लग गयी..अब जल्दी आ जाओ..अब बहुत हो गया... लो आ गयी कहते हुए मिसेज शर्माकमरे से बाहर आ जातीं हैं..आंखे तरेरते हुए। शर्मा जी को काटो तो खुन नही जैसी हालत,उन्हे ऐसी झटके की उम्मीद नही थी।सर खुजाते हुए दौडनें लगतें हैं। सारा नशा उडन छू...।समझ नही आ रहा था क्या करें ..? कैसे करे..? कहां छिपे...।
दौड-दौड कर समान जगह पर रखने लगतें हैं आधे घंटे में सारा समान जगह पर..शर्मा जी भीगी बिल्ली की तरह इधर उधर दुम दबाए दौडते फिर रहें थे .काम वाली भी आ गयी थी ,इसलिए उसके सामनेश्रीमती जी गुस्से को काबू में कर लिया था ।
श्रीमती शर्मा उनका ये रूप बारह सालो में कभी नहीं देखी थीं..उन्हे शर्मा जी के इस हालात पर गुस्सा भी आ रहा था .और दया भी । भावनाओ पर काबू रखते हुए बोली देख लिया तुम्हारा प्यार... तुम तो चाह रहे थे कि मैं न आऊं..।
कैसी बात करती हो तुम्हारे बिना तो मेरा हाल...हां अभी देख चुकी हूं कहते हुए श्रीमती शर्मा बाथरूम से शर्मा जी का बनियान और कुछ एकत्रित गीले बदबू दार कपडेउनके सामने फेक आंखे तरेरते हुए नहाने चली जाती हैं । झट कपडे उठा शर्मा जी वॉशिंग मशीन में डाल देतें हैं । और कौए की तरह इधर -उधर नजर दौडाते हुए देखतें हैं की कही कुछ और गडबड तो नहीं है....।
फिर जोर से बोलतें हैं डार्लिंग तुम नहा कर जल्दी आओ मैं तुम्हारे लिए गरमा गरमचाय बनाता हुं कह कर शर्मा जी रसोईघर की तरफ बढतें हैं। काम वाली काम खतम कर चली जाती है। शर्माजी चाय की ट्रे लिए नौकर वाले अंदाज में "मैडम चाय हाजिर है कह कर सर झुकातें हैं,श्रीमती शर्मा मुसकराए बिना नही रह पाती ...!!! और शर्मा जी मन ही मन प्रतिज्ञा लेते हैं कि वे आगे से सतर्क रहेंगें...!!!